आइये विरह के सताये हुए आशिको आपका स्वागत है हमारे इस प्यार और दर्द के विरह गजल के पेज पर आपको इस पेज पर मिलेगी बेहतरीन दर्द भरी विरह गजल हिंदी भाषा ,इ विरह का दर्द हर दिल को गहराई से छूता है और इसी भाव को व्यक्त करती है विरह पर ग़ज़ल हिंदी। दिल टूटने और बिछड़ने की तड़प को खूबसूरती से बयान करती हुई विरह की शायरी ग़ज़ल आज भी लोगों के दिलों में खास जगह रखती है। अगर आप दर्द और जुदाई की भावना को शेरों में महसूस करना चाहते हैं तो virah gazal in hindi आपके लिए बेहतरीन विकल्प है। KHUDKIKALAM पर आपको ऐसी अनमोल ग़ज़लें और शायरियाँ मिलेंगी जो आपके जज़्बात को सही शब्दों में ढाल देंगी इसके आलावा आप अपने प्रेमी और प्रेमिका से कितना चाह रखते है ये हमरी चाहत की ग़ज़ल के माध्यम से जाहिर कर सकते है
~~【{◆◆राजा बोले◆◆}】~~
राजा बोले रानी को,
सुन दुनिया की कहानी को,
पत्थर के बुत अकड़ कितनी,
लगा दें आग पानी को.
लोभ लालच का समंदर है,
हर कोई इसके अंदर है,
पेट भरकर भी भूख ना मिटे,
ज़रा समझ इनकी शैतानी को।
सदियों से लड़ते मरते हैं,
बैगानी चीज पे गिरते हैं,
इनकी हवस का क्या कहना,
नोच डालते हैं जनानी को।
खुद ही खुदको घेरा है,
हर तरफ सरहदों का फेरा है,
नाजाने कितने भगवान इनके,
फिर भी ना समझे बात रूहानी को।
ज्ञान के नाम की लंका है,
बजा नफरतों का डंका है,
हर कोई ज़हर उगलता अमन,
कौन जाने किसी की परेशानी को।
~~【{◆◆क्या पता◆◆}】~~
यही जग मीठा इसी में कड़वाहट है,
फिर क्या जिंदगी से घबराहट है.
दुख है सुख है या दर्द कोई मन में,
जी रहे जिंदगी यही तो बड़ी राहत है।
जिस बगिया में खिले वहीं महकना है,
आराम से रहने की तो सबकी चाहत है।
अच्छा बुरा जो वक़्त है कबूल करलो,
डट के रहना ही आगे बढ़ने का साहस है।
यहाँ मुकाम और मौके सबको मिलते रहते,
जो ना समझे तो मुश्किलें,समझे तो दावत है।
क्यों किसी को दोष दें अपनी मुफ़लिसी का,
क्या पता कौन अमन किस मर्ज से आहत है।
~~【{◆◆एक बात◆◆}】~~
एक बात दिल में छुपा ली है,
तेरी ठोकर गले लगा ली है.
क्या कमी थी मेरे इजहार में,
मायूस मोहब्बत मातम बना ली है।
तन्हा सा होगया दिल सारा,
अब अंधेरों की बस्ती बसा ली है।
मुस्कराकर आये थे दर तेरे,
नम अश्कों में जिंदगी बहा ली है।
बेदर्द है किसी से चाहत अमन,
अकेले रहना ये कसम खा ली है।
~~【{◆◆हर कोई◆◆}】~~
नया दौर नया काज है,
हर कोई जिंदगी से नाराज है.
नाजाने क्यों बदला वक़्त इतना,
रिश्ते नातों का बदला मिज़ाज है।
एक दूजे से मुँह मोड़ते हैं लोग,
टूटे पत्तों सा सबका हिसाब है।
छोटी बात पर भी दिमाग गर्म,
सब्र में रहने का ना अब रिवाज है।
मोबाइल ने सुनाई सजा उम्र भर की,
इसकी कैद में ही अमन सारा समाज है।
~~【{◆◆नैनों से◆◆}】~~
नैनों से नैनों की बात ना कर,
तू मुझसे दिल की मुलाक़ात ना कर.
एक बार बिखर के देख लिया,
मुझपर जोबन की करामात ना कर।
ये काले साये हैं एहसासों के,
कोई रोशन दिल्लगी मेरे साथ ना कर।
क्यों कांटो की राह पे दौडूं मैं,
फिर वही तड़पते तन्हा हालात ना कर।
इन राहों पे कोई चैन कहाँ मिले,
अपनी जिंदगी बेवजह ही ख़ाक ना कर।
मैं परिंदा हूँ किसी और शहर का,
मेरे संग अमन सफर की शुरुआत ना कर।
~~【{◆◆क्या फ़र्क◆◆}】~~
जिंदगी निकल रही तकरार में,
आँसू बह रहे हैं प्यार में.
जिसको अपना बनाया था,
वो तो गुम है कहीं अंधकार में।
हम तो टूटकर बिखर रहे हैं,
जैसे जिस्म टूट रहा हो अंगार में।
साथ दे ना दे उन्हें क्या फ़र्क,
उंगली तो हमपे उठती है बाजार में।
वो तो चल दिये वक़्त बिताकर,
जैसे घाटा पड़ा हो किसी व्योपार में।
कितने सितम सहेगा दिल पे अमन,
अच्छा वक़्त नही रहा अब संसार में।
~~【{◆◆आखिर◆◆}】~~
दुनिया आँखे मीच रही है,
बच्चों की बस्ती चीख रही है.
बारूद सारा जिस्म में भर दिया,
ताकत कमजोर को पीस रही है।
शहर गाँव गलियों में खून,
जिंदगी बस माँगती भीख रही है।
नरसंहार को देख कोई बोले ना,
ये कुदरत माथा पीट रही है।
लाशों के ढेर पे मुस्कराते हैं लोग,
क्यों इंसान की सोच नीच रही है।
दुनिया बेगैरत बन बैठी है अमन,
आखिर में जलाती बस दीप रही है।
~~【{◆◆ये मर्ज◆◆}】~~
क्या चाहत की मेहरबानी है,
थोड़ा आग तो थोड़ा पानी है,
कभी बरसे सावन अंखियों से,
कभी बहार दिल की सुहानी है।
हर कोई इसमें मस्त हुआ है,
नजर नजर ही पस्त हुआ है,
सब तरफ हैं मेले दिल के लगे,
बिगड़ी बिगड़ी ये जवानी है।
कौन समझाये यहाँ दीवानों को,
जिंदगी की राह से अनजानों को,
मनमर्जी का हर बंदा है मालिक,
कुछ खेल दिल का कुछ जिस्मानी है।
नई नई निगाहें जो मिलती हैं,
जोबन की कलियां खिलती हैं,
इस बारिश में बिगना हर कोई चाहे,
चाहे जिंदगी मूर्ख या सियानी है।
लाख लोगों ने हैं यहाँ दर्द सहे,
सबने अपने अपने एहसास कहे,
फिर भी लोग बेकाबू हैं अमन,
ये मर्ज ही सदियों पुरानी है।
~~【{◆◆देखा देखी◆◆}】~~
बात बात की बात है,
सब चोर सिपाही साथ है,
नेता लूटे है देश को,
हर बेईमानी में हाथ है।
समाज के टुकड़े हुए पड़े,
जात धर्म पे रोज़ लड़े,
कुछ ना है इंसान को समझ,
भेदभाव की बारात है।
थोड़ी चिंगारी लगाओ तो,
इनको जानवर बनाओ तो,
सब्र नही लोगों को कुछ,
पल में शहर सारा राख है।
देखा देखी सब चलते,
क्यों नही ये संभलते,
फिरते हैं सब अनपढ़ बने,
चाहे कितनी भी डिग्री पास है।
क्या कहूँ इन हालातों को,
नफ़रत में नाचती बारातों को,
कहाँ कहाँ उजाला करेगा अमन,
हर तरफ अंधेरी रात है।
~~【{◆◆गहरी बात◆◆}]~~
दिल की गहरी बात से,
डर लगता है अब रात से.
करके मोहब्बत रो रहे हैं,
बचना अच्छा इस करामात से।
वक़्त की बर्बादी तय हो गयी,
मत उलझो इश्क़ की जात से।
नए दौर किसपे करें यकीन,
दिल लगा तो लगे खेल रहे आग से।
तन्हाइयों के मेले लग जाएंगे,
मत गुजरना कभी तुम इस राह से।
सच्चे दिल का कौन मिले अमन,
हर कोई भीगा जिस्म की बरसात से।
🔚 निष्कर्ष
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❓ FAQs
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ये ग़ज़लें जुदाई, तन्हाई और दर्दभरी मोहब्बत की गहराई को खूबसूरती से बयान करती हैं।